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आमिर खान ने सत्यमेव जयते जैसे कार्यक्रम द्वारा वर्षों से सो रही सरकार की आँख खोल दी है यह कहना हर्गिज गलत नही होगा। एक सोचने वाली बात यह है कि हम यह जानते हुए कि भ्रूण हत्या एक जघंन्य अपराध है, कुछ नही कर पाते हैं। हममें से न जाने कितने लोग जो खुद को बुध्दिजीवी कहते हैं। टेलीविजन पर फ़ैशन शो और न जाने कितने वाहियात सीरियल देखते है, किन्तु आज आमिर खान ने आवाज उठाई तो साथ देने की बजाय बाजारवाद का नाम ले रहें हैं। हाँ मै मानती हूँ बाजारवाद तो होगा ही, लेकिन कहाँ नही होता? यही आवाज़ अन्ना हज़ारे या बाबा रामदेव ने उठाई होती तो उन्हें क्या कह कर शान्त किया जाता? माना कि आमिर अभिनेता है, लेकिन हम यह क्यों भूल जाते हैं, जब तक कोई भी बात पूरी तरह से मीडिया में नही आ जाती सरकार सोई ही रहती है। सोई क्या रहती है सही अर्थों में सुला दी जाती है।
क्या आप जानते हैं भारत वर्ष में लगभग दो दशक पूर्व अल्ट्रासाउंड मशीन के द्वारा भ्रूण-परीक्षण पद्धति की शुरुआत हुई थी, जिसे एमिनो सिंथेसिस कहा जाता था। इसका उद्देश्य सिर्फ गर्भस्थ शिशु के क्रोमोसोमों के संबंध में जानकारी हासिल करना था। यदि इनमें किसी भी तरह की विकृति हो, जिससे शिशु की मानसिक व शारीरिक स्थिति बिगड़ सकती हो, तो उसका उपचार करना होता था । किन्तु अल्ट्रासाउंड मशीन का इस्तेमाल गर्भ में बेटा है या बेटी है की जाँच के लिये किया जाने लगा। अगर गर्भ में लडक़ा है तो उसे रहने दिया जाता है व लडक़ी होने पर गर्भ में ही खत्म कर दिया जाने लगा। इस लिंग चयनात्मक पद्धति को अवैध बताते हुए सन 1994 में प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीक( विनियमन और दुरूपयोग निवारण ) अधिनियम बनाया गया जिसे सन1996 में प्रचलन में लाया गया। ताकि कन्या भ्रूण हत्या रोकी जा सके। इस अधिनियम के अंतर्गत, लिंग चयन करने में सहायता लेने वाले व्यक्ति को तीन वर्ष की सजा ,तथा 50,000 रूपये का जुर्माना घोषित किया गया। तथा लिंग चयन में शामिल चिकित्सा व्यवसायियों का पंजीकरण रद्द किया जा सकने और प्रैक्टिस करने का अधिकार समाप्त किये जाने का कानून बना। पब्लिक हैल्थ ऑफि़सर्स का कहना है कि पिछले दो सालों में 21,072 अल्ट्रासाउँड की मशीने रजिस्टर्ड की गई थी। जो कि तब तक ही कानूनन वैद्य थी जब तक की उनसे भ्रूण की जाँच नही की जाती। इसी दौरान 199 मशीनो को भ्रूण जाँच करने के जुर्म में सील कर दिया गया व 405 डॉक्टर्स पर भी गैरकानूनी टैस्ट को करने का चार्ज लगा दिया गया।फिऱ भी चोरी छिपे भ्रूण परीक्षण करवाया जाता रहा। जिसे रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी कमेटी बनाई गई। किन्तु सरकार की तमाम कोशिशे कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में नाकाम ही रही।
यूनिसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार लड़कियों के मामले में भारत की स्थिती चिंताजनक है।कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ते आकड़ों ने भारत के कुछ राज्यों में लिंगानुपात में भारी गिरावट ला दी है।देश की जनगणना 2001के अनुसार 1000 लडक़ो पर लड़कियों की संख्या 0से6 वर्ष तक की आयु का अनुपात दिल्ली में 845,पंजाब में 798,हरियाणा में 819, गुजरात में 883 था।यूनिसेफ़ की रिपोर्ट बताया कि भारत में प्रतिदिन 7,000 लड़कियों की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है। आज की ताजा स्थिती में संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अवैध रूप से अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2,000 अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता है।यह स्थिति धीरे-धीरे इतनी विस्फोटक हो सकती है कि महिलाओं की संख्या में कमी उनके खिलाफ अपराधों को भी बढा सकती है ।
कन्या भ्रूण हत्या से 2007 में देश के 80 प्रतिशत जिलो में लिंगानुपात में गिरावट आ गई थी। प्रति 1000 लडक़ों पर भारत में लिंगानुपात 927, पाकिस्तान में 958,नाइजीरिया में 965 आकां गया था।
आमिर खान की इस रिपोर्ट ने यह साबित भी कर दिया है कि भ्रूण हत्या का कारण अशिक्षा व गरीबी नही है, वरन शिक्षित व सम्पंन परिवार भी इस तरह के कृत्य में शामिल है। कन्या भ्रूण हत्याओ का पहला और प्रमुख कारण तो यही है कि आज भी बेटे को बुढापे की लाठी ही समझा जा रहा है और कहा जाता है की पुत्र ही माँ-बाप का अंतिम संस्कार करता है व वंश को आगे बढ़ाता है। अत: आर्थिक और पारम्परिक रूप से भी बेटा ही परिवार के लिये ज्यादा महत्वपूर्ण समझा जाता है। इसके विपरीत बेटियों को पराया धन पराई अमानत जैसे शब्दों से नवाजा जाता है, दहेज जैसी कुरीती का शिकार भी बेटियां ही होती हैं। माँ-बाप को बेटियों की शादी पर दहेज देना पड़ता है, जबकि बेटा दहेज के साथ बहू घर लेकर आता है।
पहले भी कई बार कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का बीड़ा उठाया गया है, गुजरात में ऎसा ही एक “डिकरी बचाओ अभियान” चलाया जा रहा है। व हिमाचल प्रदेश ने भी कन्या भ्रूण हत्या करवाने वाले की खबर देने वाले को दस हजार का इनाम देने की घोषणा कर डाली है। सरकार अमेरिका व कनाडा से आयातित लिंग परीक्षण किट पर भी रोक लगा रही है। हमारे देश की महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी महात्मा गाँधी की 138 वी जयंती के मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार मंत्रालय की बालिका बचाओ योजना( सेव द गर्ल चाइल्ड) का उद्घाटन किया था। बालिकाओं के सशक्तिकरण की शुरूआत घर से ही करनी होगी।
हम जानते है कि समाज में जागरूकता लाकर ही कन्या भ्रूण हत्या को रोका जा सकता है। और यह कार्य मीडिया द्वारा बखूबी निभाया जा सकता है। हमें आमिर का और आमिर के जैसे हर उस व्यक्ति का सपोर्ट करना चाहिये जो इस अभियान में शामिल है।
वरना वह दिन दूर नही जब एक कन्या के कई-कई पति होंगे। लड़कियों की निरंतर घटती संख्या जनसख्यां मे गिरावट तो पैदा करेगी ही, वरन बलात्कार जैसे घृणित कार्य को भी बढ़ावा देगी।
सुनीता शानू
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